केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला में संस्थान का 76वां स्थापना दिवस मनाया गया, जिसमें प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। कृषि वैज्ञानिक चयन मण्डल के अध्यक्ष डॉ॰ संजय कुमार एवं शिमला शहर के महापौर सुरेन्द्र चैहान ने भी कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।
संस्थान के निदेशक डॉ॰ ब्रजेश सिंह ने कार्यक्रम में उपस्थित गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने इस मौके पर बताया की आलू हमारी देशज फसल नहीं है और यह 1610 के आसपास साउथ अमेरिका से विश्व के अन्य क्षेत्रों में पहुंचा था। शुरुआत में यह संस्थान बिहार के पटना में सन् 1949 में स्थापित किया गया था लेकिन जलवायु से संबंधित कारणों के कारण सन 1956 में यह शिमला में लाया गया। आज इस संस्थान ने आलू की 76 किस्मों का विकास सभी जलवायु क्षेत्रों के लिए हिसाब से किया है।  
राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि बदलते जलवायु परिवर्तन के दृष्टिगत किसानों के लिए आय के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध करवाए जाने चाहिए। उन्होंने प्रदेश में आलू पर आधारित उद्योग स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया। स्थापना दिवस की बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि देश की बढ़ती आबादी के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बागवानी फसलों का विविधिकरण और उपयोग महत्वपूर्ण रणनीति साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि आलू भारत की प्रमुख फसल है जो कुल सब्जी उत्पादन में लगभग 28 प्रतिशत का योगदान देती है।  
शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक है, जिसका वैश्विक आलू उत्पादन का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2022-23 के दौरान भारत, आलू और इसके उत्पादों के निर्यात मूल्य में 20 अरब रुपये से अधिक की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। हिमाचल में लगभग 14000 हेक्टेयर क्षेत्र में आलू की खेती होती है, जिससे लगभग दो लाख टन का उत्पादन होता है। यह राष्ट्रीय औसत से कम है लेकिन गुणवत्ता में अच्छा और बेजोड़ होने के कारण यह किसानों को अच्छी आय दिलाने में मदद करता है। उन्होंने कुफरी हिमालिनी, कुफरी गिरधारी और कुफरी करण जैसी झुलसा रोग प्रतिरोधी आलू की किस्में विकसित करने पर संस्थान को बधाई दी। उन्होंने कहा कि हिमाचल में पर्यटन और सेब आर्थिकी महत्वपूर्ण है लेकिन, आलू पर आधारित आर्थिकी से प्रदेश के किसानों को लाभ हो सकता है।
राज्यपाल ने कहा कि इस संस्थान द्वारा किए गए शोध कार्यों और तकनीकों के कारण आज भारत विश्व के प्रमुख आलू उत्पादक देशों की सूची में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। उन्होंने कहा कि पिछले सात दशकों के दौरान आलू के क्षेत्र एवं उत्पादन में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। जहाँ 1949-50 में आलू का क्षेत्रफल 2.34 लाख हेक्टेयर तथा उत्पादन 1.54 मिलियन टन था, वहीं वर्ष 2023-24 के दौरान यह बढ़कर क्रमशः 22.5 लाख हेक्टेयर तथा लगभग 56 मिलियन टन हो गया है, जो संस्थान द्वारा किये गये शोध कार्य की प्रमाणिकता को सिद्ध करता है।
उन्होंने संस्थान द्वारा लगभग 70 से अधिक किस्में विकसित करने तथा वायरस मुक्त बीज आलू के उत्पादन के लिए एरोपोनिक विधि विकसित करने पर बधाई दी। उन्होंने प्रजातियों और तकनीकों की भौतिक संपदा के संरक्षण के लिए संस्थान के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने संस्थान द्वारा 25 से ज्यादा पेटेंट हासिल करने पर भी बधाई दी। उन्होंने पिछले कुछ सालों में प्रदेश में आलू के प्रति किसानों का रुझान कम होने पर चिंता जताई तथा वैज्ञानिकों से शोध के माध्यम से इससे जुड़ी विभिन्न समस्याओं का पता लगाने का आग्रह किया।
राज्यपाल ने इस अवसर पर आई.सी.ए.आर.-सीपीआरआई शिमला के   उत्कृष्ट कर्मियों को पुरस्कृत किया। विभिन्न वर्ग जिसमें वैज्ञानिक, तकनीकी और प्रशासनिक कर्मचारियों को बेस्ट वर्कर के अवार्ड से नवाजा गया, जिसमें वैज्ञानिक वर्ग से डॉ॰ मेहिलाल और डॉ॰ आरती बैरवा, तकनीकी वर्ग से श्रुति गुप्ता और लक्ष्मण, प्रशासनिक वर्ग से संदीप दहिया और सीमा वर्मा को नवाजा गया। इससे पूर्व उत्कृष्ट किसान बहन मंजुबाला और लच्छी राम को कृषि उपकरण देकर सम्मानित किया गया। उन्होंने संस्थान के कर्मचारियों को उत्तर भारत खेल प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए भी सम्मानित किया।  
इस अवसर पर, शिमला नगर निगम के महापौर सुरेंद्र चौहान ने संस्थान के 76 वें स्थापना दिवस पर बधाई देते हुए कहा कि यह हमारा सौभाग्य है कि यह संस्थान शिमला में है। उन्होंने संस्थान के माध्यम से आलू उत्पादन और उससे संबंधित उत्पाद विकसित करने की तकनीक उपलब्ध करवाकर ग्रामीण आर्थिकी को सुदृढ़ करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इससे रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।
 कृषि वैज्ञानिक चयन मण्डल के अध्यक्ष डॉ॰ संजय कुमार ने अपने उद्बोधन में आलू को न केवल सिर्फ खाने के या खाद्य के रूप में ही नहीं बल्कि देश में एथेनोल के उत्पादन में आलू के भविष्य को लेकर चर्चा की। उन्होंने बताया कि देश की बायो-इकोनोमी 137 मिलियन डॉलर की है, जिसे देश के प्रधानमंत्री ने 300 मिलियन तक ले जाने का आह्वान किया है। उन्होंने संस्थान को पोटैटो परफेक्ट प्रोस्पेरिटी के लिए प्रेरित किया।
इस अवसर पर केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला के वैज्ञानिक, प्रगतिशील किसान और ऑकलैंड स्कूल की छात्राएं भी उपस्थित रहीं।
कार्यक्रम के अंत में सामाजिक विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. आलोक कुमार ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रेषित किया।