राज्य के किसानों व बागवानों के समग्र विकास एवं समृद्धि के लिए खेती की लागत को कम करने, आय एवं उत्पादकता को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार प्राकृतिक खेती को व्यापक प्रोत्साहन दे रही है। मानव एवं पर्यावरण पर रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों से बचाव एवं पर्यावरण व बदलते जलवायु परिवेश के समरूप कृृषि का मार्ग प्रशस्त करने के लिए शुरू की गई इस योजना के सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
हिमाचल सरकार ने दस वर्षों में प्रदेश को समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने के लिए ‘आत्मनिर्भर हिमाचल’ की परिकल्पना की है। प्रदेश सरकार ने इस वर्ष बजट में प्राकृतिक खेती से रोजगार को बढ़ावा देने और किसानों की आय को बढ़ाने के लिए 680 करोड़ रुपये की राजीव गांधी प्राकृतिक खेती स्टार्ट-अप योजना के तीसरे चरण में एक नई योजना ‘राजीव गांधी प्राकृतिक खेती स्टार्ट-अप योजना’ की शुरूआत की है, जिसमें किसानों को जोड़ा जाएगा। प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के उत्पादों को प्राथमिकता के आधार पर खरीदने और पूरे देश में गेहूं व मक्का के लिए सबसे अधिक 40 और 30 रुपये का समर्थन मूल्य तय किया गया है तथा इसके तहत प्रत्येक प्राकृतिक खेती किसान परिवार से 20 क्विंटल तक अनाज खरीदा जाएगा। इतना ही नहीं, प्राकृतिक खेती के उत्पादों को बाजार मुहैया करवाने और उनके विपणन के लिए इस वर्ष 10 नए किसान-उत्पादक संघ बनाए जा रहे हैं।
इसके अतिरिक्त गाय का दूध 45 रुपये प्रति लीटर और भैंस का दूध 55 रुपये प्रति लीटर की दर से खरीदने का निर्णय लिया गया है। हिमाचल इस क्षेत्र में मॉडल राज्य के रूप में उभरा है तथा अन्य राज्य भी प्राकृतिक खेती अपना रहे हैं।
हिम-उन्नति योजना को राज्य में क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण के साथ लागू किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य रासायन मुक्त उत्पादन और विपणन करना है। इस योजना में लगभग 50,000 किसानों को शामिल करने के अलावा, 2,600 कृषि समूह स्थापित जाएंगे। राज्य सरकार डेयरी क्षेत्र को बढ़ावा देने और दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए भी महत्त्वपूर्ण कदम उठा रही है।
प्राकृतिक खेती योजना के अधीन किसान-बागवानों की संख्या लगातार बढ़ रही है और वे अनाज, फल, सब्जी को स्थानीय बाजारों में बेच रहे हैं। विपणन के लिए बेहतर बाजार व्यवस्था की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी पहल
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